Monday, February 12, 2018

जयशंकर प्रसाद के गद्य साहित्य में पद्य और काव्यात्मकता की छाया

जयशंकर प्रसाद हिंदी साहित्य के एक मूर्धन्य साहित्यकार हैं जिन्होंने कहानी, उपन्यास, नाटक तथा निबन्ध सभी विधाओं में रचना की है। छायावादी युग के प्रमुख स्तम्भकारों जैसे पन्त, निराला तथा महादेवी वर्मा के मध्य उनका भी प्रमुख स्थान है। जय शंकर प्रसाद का जन्म 30 जनवरी 1890 बनारस में हुआ और 15 नवम्बर 1930 में, 47 साल की अल्पायु में ही निधन हो गया। इतनी अल्पावधि में भी प्रसाद ने अपनी प्रतिभा से हिन्दी के साहित्याकाश को आलोकित कर दिया।

प्रसाद ने अपने निबन्धयथार्थवाद और छायावाद’  में छायावाद जिसे रहस्यवाद भी कहा जाता है, का उल्लेख करते हुए लिखा हैकविता के क्षेत्र में पौराणिक युग की किसी घटना अथवा देश-विदेश की सुन्दरी के बाह्य वर्णन से भिन्न जब वेदना के आधार पर स्वानुभूति अभिव्यक्त होने लगी, तब उसे छायावाद के नाम से अभिहित किया गया  साथ ही प्रसाद का कहना है, ‘छाया भारतीय दृष्टि से अनुभूति और अभिव्यक्ति की भंगिमा पर अधिक निर्भर करती है' प्रसाद की रचनाओं में उनके इन्हीं विचारों की अभिव्यक्ति है।